Tuesday, January 16, 2018

में तो तेरे अंतर मैं

ना मक्का ना क़ाबा काशी, ना मस्जिद ना मंदर में   ।
पथ पथ काहे ढूँढे साधक, में  तो तेरे अंतर में  ।।

अपनी “मैं” से मूजको ढककर, मूजको ढूँढे मंदर में  ।
मैं बैठा हूँ आँख बिछाए कब तु झाँके अंतर में   ।।

No comments:

Post a Comment