पत्थर अगर कुछ कहता।
अपना दुःख बयां करता।।
कई जगह से तोडा मुझको।
घिस कर कई खरोच है पायी।।
न जाने क्या क्या गुजरी है मुझपे।
न जाने कितनी चोट है खायी।।
तब जाके इंसान को मुझमे ,
भगवान की मूरत नझर है आयी।।
मै तो हूँ पत्थर, तू इंसान कहलाता है।।
देता है दर्द जिसको,उसीकी इबादत करता है ! ! !
मेरी आह न सुनी तूने, अब गुहार लगता है।।
दुआएं कुबूल करलु तेरी, मुझसे यह उम्मीद रखता है ? ? ?
अपना दुःख बयां करता।।
कई जगह से तोडा मुझको।
घिस कर कई खरोच है पायी।।
न जाने क्या क्या गुजरी है मुझपे।
न जाने कितनी चोट है खायी।।
तब जाके इंसान को मुझमे ,
भगवान की मूरत नझर है आयी।।
मै तो हूँ पत्थर, तू इंसान कहलाता है।।
देता है दर्द जिसको,उसीकी इबादत करता है ! ! !
मेरी आह न सुनी तूने, अब गुहार लगता है।।
दुआएं कुबूल करलु तेरी, मुझसे यह उम्मीद रखता है ? ? ?
Good one
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