Thursday, September 20, 2018

इंसान की फितरत

इंसान बने क्रूर तो उसे जानवर कहते है । 
यह बेज़ुबान तो यूँही बदनाम होते है ।।

अब समज आया क्यों साधु जंगल में तपस्या करते थे ।
छोड़ कर मंदिर तीरथ क्यों जंगल को चुनते थे ।।

दया की सिख बस वहीं मिलती है ।
इंसानो की बस्ती मै बस घृणा पलती है ।।

हर देव का एक वाहन होता है ।
गणेश का मूषक, विष्णु का गरुड़ और माता का शेर होता है ।।

इंसान की फ़ितरत बस वही समज पाया ।
शायद, इसीलिए किसिने इंसान को वाहन नहीं बनाया ।।

आत्म-भक्ति

मंदिर, मूरत और छबि  में भक्ति  नज़र न आई।
जब झाँका अंतर में मैंने पावन ज्योत है पाई ।।