कुछ सवालों का अवसर,
हम को भी दे दे गिरिधर ।
हर इंसान यहाँ अर्जुन सा कर्मक्षेत्र में खड़ा हैं ।।
जंग जीते या जिंदगी जिये, इसी दुविधा में पड़ा हैं ।।
अहंकार के लाक्षागृह से,
किसी तरह बच पाया हैं ।
ईमान, धरम, लज्जा, शर्म, सब कुछ तो,
जिंदगी के जुए में हार कर आया हैं ।।
किस पर उठाए गांडीव ,
अब किस पर साधे निशाना ।
पांडव भी खुद, और कौरव भी खुद ही में पाया हैं ।।
खुद को हराकर, खुद ही से जीतना हैं ।
आज की महाभारत में फर्क बस इतना हैं ।।
कुछ सवालों का अवसर,
हम को भी दे दे गिरिधर ।
हर इंसान यहाँ अर्जुन सा कर्मक्षेत्र में खड़ा हैं ।।
हर कोई पितामह भीष्म सा,
अरमानो की शय्या पर तड़प रहा हैं ।
हर कोई मजबूर अर्जुन सा,
अपनो से ही उलझ रहा हैं ।।
अभिमन्यु सा हर कोई,
जवाबदारी के चक्रव्यूह ने फंसा हैं ।
हर किसी के गृहस्थी का पहिया ,
कर्ण सा, कीचड़ में धंसा हैं ।।
महाभारत के हर पात्र का दुःख
एक इंसान में सिमट आया हैं ।
हर इंसान अपने आप में
पूरी महाभारत जी रहा हैं ।।
कुछ सवालों का अवसर,
हम को भी दे दे गिरिधर ।
हर इंसान यहाँ अर्जुन सा कर्मक्षेत्र में खड़ा हैं ।।
यूंतो सवाल कुछ भारी हैं,
अब के नादान इंसान की बारी हैं ।
जवाब देना तुझे भी आसान नहीं होगा ।
पर यकीन है मुझे, तू परेशान नहीं होगा ।।
पा कर भी अवसर, यह कुछ बोल नहीं पायेगा ।
खुद से ही अनजान है, तुझ से क्या सवाल कर पायेगा ।।
Excellent
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