Thursday, September 20, 2018

इंसान की फितरत

इंसान बने क्रूर तो उसे जानवर कहते है । 
यह बेज़ुबान तो यूँही बदनाम होते है ।।

अब समज आया क्यों साधु जंगल में तपस्या करते थे ।
छोड़ कर मंदिर तीरथ क्यों जंगल को चुनते थे ।।

दया की सिख बस वहीं मिलती है ।
इंसानो की बस्ती मै बस घृणा पलती है ।।

हर देव का एक वाहन होता है ।
गणेश का मूषक, विष्णु का गरुड़ और माता का शेर होता है ।।

इंसान की फ़ितरत बस वही समज पाया ।
शायद, इसीलिए किसिने इंसान को वाहन नहीं बनाया ।।

आत्म-भक्ति

मंदिर, मूरत और छबि  में भक्ति  नज़र न आई।
जब झाँका अंतर में मैंने पावन ज्योत है पाई ।।

Sunday, May 20, 2018

कर्मो का हिसाब

कुछ खुशियाँ अभी और आनी है।
कुछ ग़मोका भुगतना अभी बाकि है।।

यूहीं नहीं चलरही है साँसे।
कुछ कर्मो का हिसाब अभी बाकि है।।

Tuesday, May 15, 2018

पत्थर की आह

पत्थर अगर कुछ कहता। 
अपना दुःख बयां करता।।

कई जगह से तोडा मुझको। 
घिस कर कई खरोच है पायी।। 

न जाने क्या क्या गुजरी है मुझपे। 
न जाने कितनी चोट है खायी।।

तब जाके इंसान को मुझमे ,
भगवान की मूरत नझर है आयी।।

मै तो हूँ पत्थर, तू इंसान कहलाता है।।
देता है दर्द जिसको,उसीकी इबादत करता है ! ! !

मेरी आह न सुनी तूने, अब गुहार लगता है।।
दुआएं कुबूल करलु तेरी, मुझसे यह उम्मीद रखता है ? ? ? 
  

Monday, April 16, 2018

एक फरियाद

🙏 एक फरियाद 🙏

माना तू  भगवान है।
पर अपनी ही दुनिया से अनजान है 

कुछ असर कलियुग का तुजपार भी हुआ होगा ।
वरना "यदा यदा हि धर्मस्य ...... "  कहने वाला,
क्या यूँही अपना वचन भूला होगा ।।

अपने वचनकी गर लाज रखलेता। 
तेरे सामने यह अत्याचार न होता ।। 

इस पाप को गर चुपचाप न देखता। 
अपने होनेका कुछ प्रमाण तो देता ।।

माना अब इंसानियत नहीं रही। 
पर तेरी खुदाई कहाँ खोगई ।।

अब भी न आया तू  , तो यह जहाँ "अनाथ" कहलायेगा। 
अबतक था "रणछोड़" अब तू "जगछोड़" कहलायेगा ।।


Friday, March 30, 2018



मोत से क्या डरना
      कई बार मर लिए।

डर तो ज़िन्दगी का है
      कहीं फिरसे ना मिले।।


Thursday, February 1, 2018

"मै " मारे, तव शिव तारे

"मै " मारे, तव शिव तारे 

कोई मन मारे, कोई तन मारे,
कोई मारे मूक जीव।
ना मारे तु मैं को अपनी
क्यूँ कर पावै  शिव ।।
                       - साधक

कोइ मन को मारता है।  तो कोई तन को मारता है।  
तन को मारने का मतलब है अपने ही शरीर पर अत्याचार करना।  उपवास करना, कईं 
दिनों तक बगैर अन्न जल के रहना। और भी कईं तरहके अत्याचार लोग अपने ही शरीर पर करते है, यह सोच कर की ऐसा करनेसे परमेश्वर की कृपा होगी। 

गीता अध्याय , १६ 
भगवान श्री कृष्ण कहते है 

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति चैकान्तमनश्नतः।
  
चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।।6.16।।

अर्थात हे अर्जुन यह योग तो अधिक खानेवालेका और बिलकुल खानेवालेका तथा अधिक सोनेवालेका और बिलकुल सोनेवालेका ही सिद्ध होता है।

गीता अध्याय , १७ 

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।

युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।6.17।।

दुःखोंका नाश करनेवाला योग तो यथायोग्य आहार और विहार करनेवालेका कर्मोंमें यथायोग्य चेष्टा करनेवालेका तथा यथायोग्य सोने और जागनेवालेका ही सिद्ध होता है।

कुछ लोग अपने मन को मारते है।  आध्यात्म मैं मन की अहम् भूमिका है।  संत कबीर कहते है ,

कुंभे बांधा जल रहै, जल बिन कुंभ होय।

ज्ञानै बांधा मन रहै, मन बिन ज्ञान होय।।

घड़े की दीवरों के होने से ही उसमें जल टिका रहता है और जल के बिना केवल मिट्टी से घड़ा भी नहीं बन सकता। अर्थात दोनों के संयोग से ही दोनों है। इसी प्रकार यह चंचल मन ज्ञान के बंधन से ही शांत -स्थिर रहता है और इसी मन के बिना ज्ञान भी नहीं होता। (संसार मैं जितना भी ज्ञान विज्ञान दिखाई पड़ता है उसका माध्यम मन ही है। 

कुछ लोग बेजुबान पशु की बलि चढ़ाकर परमात्मा को खुश करना चाहते है।  परंतु जिसको मरना चाहिए उसे नहीं मारते।  अगर किसीको मरने से परमात्म दर्शन होता है तो वह  है "मै " अहम् , अभिमान , ego . 

जब तक हम इस "मै " (ego ) को नहीं मरेंगे,  साधन के यज्ञ मैं "मै " की बलि नहीं चढ़ाएंगे तभ तक परमात्म साक्षात्कार नहीं होगा। 

- साधक 


ग्रहण

कुछ पल के इस ग्रहण की फ़िकर करे हर कोई ।
ना सोचे उस ग्रहण की, आतम पर “मै” से होई ।।

चाँद सूरज जब ग्रहण करे, कुछ पल मैं छूट जाय ।
“मै” जो आतम ग्रहण करे, जनमो रहे परछाय ।।

आतम = आत्मा
मै = ego