Sunday, January 14, 2018

मै से मय तक

मै से मय तक 

विषयों के पीछे अन्नमय रहगया था
"मैं " को मिटा के तनमय हो गया ।।

गिनकर दौलत ग़रूर छा रहा था
साँसों को गिनकर प्राणमय हो गया ।।

सुख की खोज मै मन भटक रहा था
मन मै जब झाँका मनमय हो गया ।।

अंतर के खुले द्वार ध्यान अंतर मैं स्थिर था
मिटगया अंधकार ज्ञानमय हो गया ।।

आत्मा से आत्मा का दीदार हो रहा था
अब रहा कुछ, अब बचा कुछ, सब कुछ सर्वदा आनंदमय हो गया ।।

कोसों का जो फ़सिला लग रहा था
रास्ता, पाँच कोष मै तय हो गया ।।

"मैं " एक दीवार थी, उस पार परब्रह्म था
ढलतेही "मै" सब प्रभुमय हो गया ।।

ख़ुद में रहेकर खुदसे जुदा था

भुलाके खुदको, ख़ुद खुदा होगया  ।।

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