पत्थर अगर कुछ कहता। अपना दुःख बयां करता।। कई जगह से तोडा मुझको। घिस कर कई खरोच है पायी।। न जाने क्या क्या गुजरी है मुझपे। न जाने कितनी चोट है खायी।। तब जाके इंसान को मुझमे , भगवान की मूरत नझर है आयी।। मै तो हूँ पत्थर, तू इंसान कहलाता है।। देता है दर्द जिसको,उसीकी इबादत करता है ! ! ! मेरी आह न सुनी तूने, अब गुहार लगता है।। दुआएं कुबूल करलु तेरी, मुझसे यह उम्मीद रखता है ? ? ?